आटा भईया बडा़ परेशान... थाली में आते ही रहता हैरान! आओ चलो सुने इसकी मन की पीडा... "आटा भईया सोचे क्या है ये कोई क्रीडा? बिलकुल रिस्क नहीं लेने का रे बाबा! मुक्को से तो मैं मर जाएगा रे बाबा! ऐ देवा!...उठा ले रे उठा ले... मुझको नहीं इस थाली को उठा ले! न रहेगी थाली न गुंधेंगा आटा ये सत्यानाशी करमजली थाली टूटकर चूर क्यूँ नही हो जाती? अरे! पानी डालकर मुझको मार डाला!! तेरा मुझसे हैं पहले का नाता कोई? क्या ऐसे दुशमनी हैं निभाता कोई! सुनो...ऐसे न मुझे तुम पटको क्यूँ करू मैं तमंचें पे डिस्को? धिशूम-धिशूम अब बस भी करो!! इस दंगल में मेरी कोई मदद करो... दे पछाड़...दे मार...ये तूने क्या किया!! दर्द-ए-दिल तूने मुझे हर बार दिया... मुझे ठोक पीटकर इंसान पौंछतें हैं अपना पसीना वाह रे वाह क्या बात हुई ये म्यूजिक:
धुम-तानना-धुम-तनना!!!! और मेरी कमर के तुकडे़-तुकडे़ करके ओ इंसान तुम तो हाथ धोकर चल दिए!!"
~ कायनात सुल्ताना कु़रेशी
It means a lot!!!!! Thank you....😊💓
Read it twice 😁
Bilkul risk nhi lene ka re had me laughing 😂 Fun poem it was 😁👏
hahahhahahaahah