"चौराहा"
मेरे घर से कुछ दूर, एक चौराहा कटता है ।
उसकी दो राहें, अलग-अलग मंडी ,
की ओर जाती है ।
दोनों ही मंडी में,
ज़रूरत का सामान बिकता है ;
दोनों ही मंडी में,
मोल-भाव करना पड़ता है ।
एक मंडी में, सब्जी, फल, आदि बिकते हैं;
और एक मंडी में, संभोग बिका करता है ।
है दोनों ही ज़रूरी फिर भी ;
एक मंडी बेधड़क, शान से चलती है ;
एक मंडी चुप-चाप अंधेरे में चलती है ।
पर दोनों ही मंडी में एक बात आम पड़ती है;
दोनों ही मंडी में ;
खरीददार की कमी न पड़ती है ।
बाकी दो राहें चौराहे की :
एक सफाई कर्मी ;
की बस्ती की ओर जाती है ।
एक पंडित, मौलाना ,
के घर की ओर निकलती है ।
दोनों ही, सफाई का ही काम करते हैं ;
एक बाहर की गंदगी, साफ करता है ;
एक मन की गंदगी, साफ करता है ।
दोनों में नाजाने फिर भी क्यों ;
भेद-भाव मानव करता है ।
है चारों ही राहों, की मंज़िल ज़रूरी ;
फिर भी न मिलता, क्यों सबको सम्मान है ?
है चारों ही राहों की मंज़िल ज़रूरी ;
फिर क्यों मिलता, कुछ को अपमान है ?
Every profession is important and should be respected .
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