चींटी जो कई बार गिरके ;
फिर भी चलती जाती है ।
नाजाने, क्या हौसला लेकर ;
वह बस चलती जाती है ।
रास्ते में, रुकावटें उसको ;
कितनी बार गिराती हैं ।
नाजाने, कितनी कोशिश के बाद ;
अपनी मंज़िल से, वह मिल पाती है ।
चींटी न जाने फिर भी ;
क्या हौसला लेकर चलती जाती है ।
घड़ी उसको समय ;
नाजाने, कितनी बार बताती है ।
बिन रुके, फिर भी ;
वह सिर्फ, चलती जाती है ।
बदरा की गरज को भी ;
वह अनसुना कर जाती है ।
चींटी नाजाने ;
क्या हासिल लेकर, चलती जाती है ।
खुद से कई गुना वज़न, को भी ;
वह आसानी से, उठा पाती है ।
नाजाने किस चक्की का ;
आखिर यह आटा खाती है ।
चींटी नाजाने ;
क्या हासिल लेकर, चलती जाती है ।
नन्ही सी होकर भी ;
शेर तक से वह, भीड़ जाती है ।
चींटी नाजाने ;
क्या हासिल लेकर, चलती जाती है ।
चींटी नाजाने ;
क्या हासिल लेकर, चलती जाती है ।।