दिल ने जब कि हिमाक़त....
बातें ज़ुबान से, जब तक मैं करता रहा ;
महफिलों की शान,
मुझे हर बार कहा गया ।
जब दिल ने, खुलकर कहना सिख लिया ;
तो सरेआम,
बेशर्म होने के ताज से नवाज़ा गया ।
ज़ुबान थी गलत ?
या, दिल ने नादानी की थी ?
यह खुदसे फिर ;
ताउम्र, पूछता ही मैं रह गया ।
जब खुदा ने बुलाया तो ;
मेरे जनाज़े पर,
फिर वही लोग कहते दिख गए -
" की दिल की बात, करता था वो !
खुदा का, नेक बंदा था वो । "
~ FreelancerPoet
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हम कुछ भी कहें ,
ज़माने को खोट दिख ही जाएगी ।
ज़ुबान से करो ,
या बात करो दिल से ;
मगर, कोई न कोई बात फिर भी ,
ज़माने को हमारी बुरी लग ही जाएगी ।
की ज़िंदा है तब तक ही यह कारवां चलता है,
जनाज़े पर हर आदमी में उन्हें नेक बंदा ही दिखता है ;
अफसोस है इसी बात की,
मुर्दा होने पर ही क्यों ऐसा होता है ?
क्यों ज़िंदा होने तक , ज़माने का यह रुख होता है ?
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आपको क्या लगता है ;
ज़माना आखिर ऐसा क्यों करता है ?
Tell about it in the comments and help me know !! 🤔
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