कोसो मील दूर तपतपाती धूप में सर पर लिए गगरी और तनाव मन में न जाने कैसे जाती होगी वो! पड़ जाते होंगें छालें पैरों में या शायद थक जाती होगी वो आधे रस्तें में! न ध्यान रहता होगा उसे अपनी भूख-प्यास का... न रुकती होगी वो चाहे कंकर चुभतें हो पैरों में! पानी से भरी गगरी जब छूट जाती होगी बीच रस्तें पर न जाने क्या बीतती होगी उस क्षण उस पर!! कठोर परिश्रम के बाद जब वह स्वेद पौंछती होगी अपने ललाट से पानी से भरी गगरी देख नयन भर आते होंगें उसके अत्यधिक प्रसन्नता से!!! वहाँ तरसते हैं ऐसे करौडो़ं लोग पानी के अभाव से यहाँ हम हैं जो बहा रहें हैं पानी बेहिसाब बिना सोच विचार के! ~ कायनात सुल्ताना कु़रेशी
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बहोत खूब।