कुछ दिन कहीं अकेले जाना चाहता हूं
किसी और से नहीं खुद से मिलना चाहता हूं
कुछ खास हैं नहीं ज़िन्दगी मैं ये मान लिया मैंने
ज़िन्दगी बची हैं अब मेरी ये
खुद को बताना चाहता हूं..
चलने पर अकेले कई बार गिरूंगा में
हिम्मत है अभी थोड़ी थोकड़े खाना चाहता हूं
पलके झपकाने पर जोड़ से
सच्चाई दिखती हैं मुझे,
जिन राहों को तुम मेरी दुनिया बोलते हो
उन राहों को अब झुठलाना चाहता हूं
कुछ दिन कहीं अकेले जाना चाहता हूं..
नस नस में मेरे जज्बातों का जहर था
जो काट देता इन्हे तो किया जी पाता,
मुझे मौत के खयाल आने लगे थे
मरता नहीं तो पागल हो जाता..
खेर उस ज़िन्दगी से नाता तोड़ना चाहता हूं
अपना सब बस कुछ दिनों के लिए छोड़ना चाहता हूं
ख़तम करना हैं मुझे अपना वह
कमजोर सा किरदार,
उस पुराने आयने से भी मुंह मोड़ना चाहता हूं
वह सभी लम्हे किस्से फिर याद आएगा मुझे
उन पलों को अकेले जीना चाहता हूं
कुछ दिन कहीं अकेले जाना चाहता हूं..
मनॉटो से डरता हूं कहीं पूरी ना हो जाए
कोशिशों में मेरी कहीं कमी ना रह जाए
यू तो टूटे है मेरी ख्वाहिशें कई बार
ये निगाहें बस कोई नया ख्वाब देखने से ना दर जाए
अब लोगों से थोड़ी कम पहचान रखता हूं
कभी सच्ची तो कभी जूठी मुस्कान रखता हूं
अब तो जादा नाराजगी भी नहीं मुझे किसी से..
बस अपनी बनाई दुनिया में खो जाना चाहता हूं
बस कुछ दिन अकेले कहीं जाना चाहता हूं,..
❤️❤️👍