डर डर के तू , सदा जीया ;
फिर मौत का, क्या डर भला ?
के जिंदा तू, बता ज़रा ;
था किस घड़ी, आखिर भला ।
जग-मग इन, सितारों में ;
रोशन होने था, तू चला ।
बढ़ते हुए इस ताप से ;
किस चीज़ का, फिर डर भला ?
के ताप को, सह कर ही तो ;
कोयले से है, हीरा बना ।
फिर ताप से, तू क्यों डरा ?
चल छोड़ यह बता ज़रा ;
के जख्म क्या, कभी भला ;
है ठीक हुआ, जले बिना ?
फिर ताप के, इस भाव से ;
किस बात का, फिर डर भला ?
क्या याद वो, कथा तुझे :
उन वीरों की , लड़ाकों की ;
जो युद्ध में , निडर लड़े ।
अब बात यह बता ज़रा :
" के युद्ध क्या लड़े बिना ; "
" कोई योद्धा के शौर्य का ; "
" कभी भला पता चला " ।
रणभूमि में उतारने से ;
अपने इस जंग को, लड़ने से ;
फिर तू भला , है क्यों डरा ?
डर-डर के तू , सदा जीया ;
फिर मौत का, क्या डर भला ?
के जिंदा तू, बता ज़रा ;
था किस घड़ी, आखिर भला ।
चल छोड़ यह, बता ज़रा :
" के जो भी व्यक्ति, है बड़ा बना ; "
" अगर वो भी , तेरी तरह ;"
" रहता सदा , डरा हुआ ।"
तो क्या, वह व्यक्ति भला ;
बन पाता, कभी इतना बड़ा ?
हूँ जानता, यह भी में ;
दिल्लगी से है , तू डर रहा ।
के जिस पर, दिल था जा मरा ;
दिया उसने, ज़ख्म बड़ा ।
पर बात यह, बता ज़रा :
" ज़ख्म को अगर, रखेगा तू हरा ;"
" भरेगा क्या यह, ज़ख्म तेरा ? "
चल छोड़ यह बता ज़रा :
" अकेला जब तू, आया है ; "
" अकेला ही , तू जाएगा । "
अकेले होने से फिर भला ;
तू क्यों है, यूँ डर रहा ?
अकेला ही निकल ज़रा ;
अपने डर से, तू भीड़ ज़रा ।
के डर से भी, है तू बड़ा ;
फिर तू भला , क्यों डर रहा?
ज़रा सा तू , क्या गिर गया ;
गिरने से फिर, तू डर गया ।
के उठ तू, संभाल ज़रा ।
अगर इरादा है, तेरा खरा ;
तो फिर, क्यों तू डर रहा ?
नहीं हूँ , में यह कह रहा ;
के डरना, खराब बात है;
या डरना, कोई पाप है ।
पर डर-डर के, तू युहीं रहा ;
तो यह मुझे, बता ज़रा ;
के कब जियेगा, तू भला ।
डर-डर के तू , सदा जीया ;
फिर मौत से , तू क्यों डरा ?
के जिंदा तू, बता ज़रा ;
था किस घड़ी, आखिर भला ।
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Shaandaar