तू चल ,
के तेरे सफर को भी ;
तेरी ही तलाश है !
तू चल ,
के तेरी सिर्फ तुझे ही नहीं ;
तेरी मंज़िल को भी तलाश है ।
तू चल ।।
तू चल ,
के तू अकेला नहीं ;
तेरा सफर है , साथी तेरा ।
तू चल ,
के खाली अगर तेरे हाथ हैं ,
तो क्या हुआ ?
पर दिल तो इरादों से है ,
भरा हुआ !
तू चल ।।
तू चल ,
के भीड़ में खो भी गया ;
तो कहाँ कुछ बदल जाएगा ?
बस स्थान बदल जाएगा ;
ढूढ़ने को तुझे पहले सिर्फ तू था चला ;
अब कोई और आएगा !
और क्या बदल जाएगा ?
और , क्या बदल जायेगा ??
तू चल ।।
तू चल ,
मगर, यह सुन ज़रा ;
के सफर है तेरा ,
तो, निर्णय भी,
तेरे ही होने चाहिए !
के कब है चलना ?
कब ठहरना ?
इसका निर्णय भी अब ,
तेरा ही, होना चाहिए ।
तू चल ।।
तू चल,
के लंबा है ये सफर ,
काफी दूरी , तय करनी है तुझे !
तू चल ,
के खुदसे अब नहीं ,
दूरी, है रखनी तुझे ।
के खुदसे अब नहीं ,
दूरी है , रखनी तुझे ।।
~~ FreelancerPoet
Motivating 👍