हर मोड़ पे, उसके तन पर ;
नज़र रखे कई गिद्ध, उसे नोचने ;
इंतेज़ार में, बैठे थे ।
उसकी, रूह की चमक को ;
अंधियारे से भरने की ;
तलब लिए, बेताब वो बैठे थे ।
खुद की ही तरह ;
उसको भी बेरूह करने ;
वो बेताब बैठे थे ।
हर मोड़ पे, उसके तन पर ;
नज़र रखे कई गिद्ध, उसे नोचने ;
इंतेज़ार में, बैठे थे ।
हँसी का, मुखोटा पहने ;
उसको, हँसी से वंचित करने ;
वो, इंतेज़र में बैठे थे ।
हर मोड़ पे, उसके तन पर ;
नज़र रखे कई गिद्ध, उसे नोचने ;
इंतेज़ार में, बैठे थे ।
अपना सा, चेहरा बनाए ;
वो, बहरूपिये बैठे थे ।
कभी गैर ;
तो कभी अपने ही ;
रिश्तेदार बैठे थे ।
उसके, चहकने को ;
उसके, अल्हड़पन को ;
नाजाने कैसे ?
वो, कुछ भी करने का ;
इशारा समझ बैठे थे ।
हर मोड़ पे, उसके तन पर ;
नज़र रखे कई गिद्ध, उसे नोचने ;
इंतेज़ार में, बैठे थे ।
उसके वस्त्र पर ;
उसे ज्ञान, देने वाले ;
उसे, निर्वस्त्र करने की ;
मनोकामना किए बैठे थे ।
उसके, ढके शरीर को ;
नग्न करने के ;
इंतेज़र में, वो बैठे थे ।
हर मोड़ पे, उसके तन पर ;
नज़र रखे कई गिद्ध, उसे नोचने ;
इंतेज़ार में, बैठे थे ।
महाभारत को अपना इतिहास ;
गर्व से कहने वाले ;
चीरहरण, करने को उसका ;
बेताब, बैठे थे ।
रावण, को दुष्ट कहने वाले ;
अपहरण, करने को उसका ;
इंतज़ार में बैठे थे ।
हर मोड़ पे, उसके तन पर ;
नज़र रखे कई गिद्ध, उसे नोचने ;
इंतेज़ार में, बैठे थे ।
गंगा को, माँ कहने वाले ;
उसी के घाट पर, बैठकर ;
किसी और कि बहु-बेटी पे ;
बुरी नज़र जमाएं बैठे थे ।
वेश्या को पापिन, कहने वाले ;
उसके ही साथ, संभोग करने को ;
इंतज़ार में बैठे थे ।
हर मोड़ पे, उसके तन पर ;
नज़र रखे कई गिद्ध, उसे नोचने ;
इंतेज़ार में, बैठे थे ।
उसको, नाजाने कितनी बार ;
अपने खयालों में ;
वो नग्न किए बैठे थे ।
उसके तन को नग्न करके ;
नाजाने, फिर कौनसी प्यास ;
बुझाने वो बैठे थे ।
अपनी तन की भूख ;
और, खोकली रूह को ;
खुद में, समेट वो बैठे थे ।
हर मोड़ पे, उसके तन पर ;
नज़र रखे कई गिद्ध, उसे नोचने ;
इंतेज़ार में, बैठे थे ।
हर मोड़ पे, उसके तन पर ;
नज़र रखे कई गिद्ध, उसे नोचने ;
इंतेज़ार में, बैठे थे ।।
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Beautiful.