मुसाफिर हूँ अनजान राहों का .......
मुसाफिर हूँ ;
अनजान राहों का ।
मंज़िल को हूँ ;
तलाश रहा ।
ज़िंदा एक लाश, हूँ मै शायद ;
ज़िंदगी को जो , तलाश रहा ।
अधूरा हूँ, यह तय है पर ;
क्या छूट गया, पता नहीं ।
पूरी होने की, इच्छा है बस ;
होजाऊँ पूरा मैं शायद !
इसी आस को लेकर, हूँ चला ।
इसी आस को लेकर, हूँ चला ।।
~~~ Abhishek Bagra
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Well that is the reason I became a wissenmonk 😉
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