हाँ, माना कि सफर में अभी ;
गहरे, काले, बादल छाए हुए हैं ।
मगर, कहाँ इससे यह साबित होता है ;
की, सवेर नहीं होगी ?
तू, ज़रा सी देर और, लड़कर तो देख ;
देर ही सही,
मगर, मंज़िल तेरी भी होगी !
की ,
कहते हैं न ;
"देर है उसके घर
मगर अंधेर तो है नहीं " ।
तो ,
विश्वास रख तू भी ज़रा !
की, रोशनी से मुलाकात ,
तेरी भी, फिर होगी ।
तेरे सफर की, सवेर फिर होगी ।
तेरी भी मुलाकात ;
तेरी मंज़िल से, ज़रूर होगी ।
एक न एक दिन, ज़रूर होगी ।।
©FreelancerPoet
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