जल की पावन धारा जो
जन को जीवन देती है।
हर एक बूँद से अपनी वो
हरियाली सी भर देती है।।
पर्यायवरण को दूषित कर
हमने जो संकट उभरा है।
उसका ही अंजाम है आज
जल ने कितनो को मारा है।।
सीमा पार हुई है शायद इस
बार फिर सहनशीलता की।
जो यूँ धरती एक बार फिर
कही फुट फुट कर रोयी ।।
कही तोह यूँ वो सहमी है
की पानी की एक बूँद नहीं ।
और कही यूँ वो बरसी है
की अब जिंदगी की उम्मीद नहीं।।
प्राणों की परवाह किसे जब
इंसान को खुद से कोई मोह नहीं।
धन और सुख सुविधाओं की तलाश
में अब हयात का कोई मोल नहीं।।
-miraculously miracle❣️
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Harsh reality
Beautiful 🏵️
👌