मेरी मेहनत के सिरहरण का
सपना तेरा बिफल हुआ,
मुझ पर हंसती इस जगत सभा मै
मै स्वयं ही अपना कृष्ण हुआ।
तू बेसख़ बिपदा का जहर बड़ा
भर एक सांस पी जाऊंगा मै,
इस पार दुबाएंगी मुझको
उस पार निकाल जाऊंगा मै।
या खिंस ही ले मुझे कल के तल तक
मोती लेकर आ जाऊंगा मै,
तेरे प्रश्नों के प्रति उत्तर पर
अदिक खड़ा मै प्रश्न चिन्ह हूं ,
तेरे सपनों से परे बना
मै परम भ्रम का स्राजन भिन्न हूं।
माधव ने जब दो हात दिए
तो फिर किस्मत से क्यों रोना,
जब कर्म करे से मिलेगा सब कुछ
तो भाग्य भोरोसे क्यों सोना ।
तेरा हात पकड़कर चला वहीं
जिसके मन मै रहता भई हैं,
जो डिगा नहीं कर्मो की पथ से
अंत विजय उसका तय हैं।
यदि हैं तुझसे जीवन भर रण
रख याद कभी ना भागूंगा,
हैं मेरी भी भीष्म प्रतिज्ञा
मैं मरने तक ना हारूंगा।
कुछ देर को रोक ले अपने धुन और कान खोल मेरा
परिचय सुन,
मैं ब्रह्मा का श्रेजन श्रेष्ठ
कर्मो को माना मैंने जेस्थ।
मेरे मन से हर सोक गया
पा गया हूं मैं आलोक नया,
अश्रु से अब रात नहीं
अब कोई पुरानी बात नहीं।
था भेद जो कुछ में जान गया
अपनी त्रुटिया पहचान गया...
कब भाग्य किसीने देखा है
यहां सब कर्मो का लेखा हैं,
ठोकर खाती इस जगत सभा मैं
मैं स्वयं का भाग्य विधाता हूं
हर लेख पलटने का दम जिसमें
मैं वह नियति निर्माता हूं.....
अति सुंदर कृति👌
It's incredible..!❣️❣️