मखमल सी दीवार के पीछे छीपी,
वो हसीना तीव्रता से मेरी ओर झाक रही थी।
सैकड़ो मील दूर बैठके मानो वो,शौक से,
खुद पे मेरी मदहोशी की छबि आँक रही थी।
बीचो बीच टिमटिमाते हुए अक्सर,
जैसे मुझे वो प्यार से कुछ बतला रही थी।
मैं नासमझ दंग खड़ा रहा वही,मगर,
वो अपनी पैग़ाम मुझतक पहुँचा रही थी।
मैन पूछा उस से कि ,क्या है तुम्हारी गुफ़्तगू?
वो बिना बोले इत्मिनान से बस मुस्कुरा रही थी।
आखिर में कहने लगी बड़ी मोहब्बत से,"बरखुरदार,
मैं बस अपनी चमक तुम पे बरसा रही थी"।।
~SHIRIJWAL(Ujjal P Sarkar)
अति- उत्तम..!❣️❣️