कागज़ की नॉव बनाते-बनाते ;
कब, खत लिखने लग गए ;
यह पता ही, न चला ।
की कब, बेफ़िज़ूल हस्ते रहने से ;
हँसने की, वजह ढूढ़ने लग गए ;
यह पता ही, न चला ।
कब दिन भर, सोने से ;
रातों को भी, जगने लग गए ;
यह पता ही, न चला ।
की बच्चे से जवान कब हो गए ;
यह पता ही, न चला ।
कब, चित्रों में रंग भरते-भरते ;
अपने ही जीवन में, रंग भरना भूल गए ;
यह पता ही, न चला ।
की दोस्तों से घिरे रहते-रहते ;
कब, बिल्कुल अकेले, हो गए ;
यह पता ही, न चला ।
गुड्डे, गुड़ियों से खेलते-खेलते ;
कब, जीवन का खेल, खेलने लग गए ;
यह पता ही, न चला ।
की बच्चे से जवान, कब हो गए ;
यह पता ही, न चला ।
की बच्चे से, जवान, कब हो गए ;
यह, पता ही, न चला ।।