यह पल जो है अभी ...
यह पल जो है अभी ;
न मिलेगा, तुझे फिर कभी !
इसे, युहीं क्यों तू खर्च कर रहा है ?
क्यों, इस तरह बेस्वाद सी ;
ज़िंदगी, जिए जा रहा है ?
निकल, इस स्वभाव से !
स्वाद की खोज में, निकल कहीं ।
तू, पल-पल तो खुदको, मार ही रहा है ;
तो, क्यों न जोखिम उठा ;
स्वाद की, खोज पर निकलने का ?
क्या पता, दो पल खुलकर ;
तू भी, जी ले कहीं !
पल, दो-पल ही सही ;
तू भी, जी ले कहीं ।
©FreelancerPoet